लोथल
मोहें-जो-दरो और हरप्पा के बाद सिंधु सभ्यता का तीसरा सब से बडा खोज निकाला गया नगर है लोथल। वह भारत के गुजरात राज्य में अहमदाबाद शहर से ८३ कीलो मीटर (५३ माईल्स) दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। सन १९५५ से १९६२ के वर्षों में वह आर्कीओलोजिकल सर्वे ओफ ईंडिया द्वारा विख्यात पुरातत्त्वविद डॉ. एस आर. राव के नेतृत्व में खोज निकाला गया था।


सरदार पटेल युनिवर्सिटी के प्राद्यापकों और विद्यार्थीओं के साथ डॉ. एस. आर. राव, १९६१

ईसा के पहले २,५०० और १,९०० के वर्षों में लोथल एक विकसित बंदरगाह था। वह चौडी साबरमती नदी द्वारा खंभात की खाडी से जुडा एक संरक्षित बंदरगाह था। बाद के वर्षों में खंभात की खाडी इस स्थल से पीछे हट कर पश्चिम की ओर चली गयी। उन दिनों, लोथल से नदी के रास्ते पश्चिम भारत में स्थित अन्य कई हरप्पा सभ्यता के नगरों तक पहुंचा जा सकता था। इस के कारण लोथल का व्यापारी महत्त्व बहुत बढ गया था। अपने समय में, वह पश्चिम भारत से लायी गयी अनेक प्रकार की चीजें अरबी समुद्र के रास्ते बाहरी दुनिया के देशों में निर्यात करता था और वहां से विविध चीजें यहां आयात करता था।



सन १९५५ में प्रारंभ हुए पुरातात्त्विक उत्खनन के आरंभ में ही यहां पर एक साथ कई बडे जहाज ठहर सके ऐसा एक बडा जहाजवाडा खुदाई में बाहर निकल आया। यह जहाजवाडा पकाई हुई उच्च गुणवत्तावाली ईंटों से बनाया गया था और उसमें विभिन्न ऋतुओं के बदलाव, पानी का बहाव, और माल-सामान ढोने से होनेवाली घिसाई को अच्छी तरह झेल सकने की क्षमता थी। जहाजवाडा का सबसे अनूठा लक्षण उसकी पानी को नियंत्रित करने की व्यवस्था थी। एक बार जहाजवाडा के अंदर जहाज आ जाने के बाद, यह व्यवस्था के कारण वे ज्वारभाटा तथा भाटा और नदी की बाढ से एकदम सुरक्षित हो जाते थे। अभी तक, पुरातत्त्वविदों को विश्व में कहीं से भी आज से चार हजार वर्ष पहले बनायी गयी ऐसी इंजीनियरी व्यवस्था का नमूना नहीं मिल पाया है।