पुस्तकालय


दोनों पुस्तकालय शर्मिष्ठा के किनारे पर हैं

वडनगर भाग्यशाली रहा कि उसे आज से एक सौ साल से भी पहले सन १९०५ में एक अच्छा पुस्तकालय मिला। यह पुस्तकालय की सुंदर दो-मंजिला इमारत शर्मिष्ठा सरोवर के किनारे पर नगर के बडे श्रेष्ठी और दानवीर शेठ भोगीलाल चकुलाल शाहेकरणवाला ने अपने पिताजी की याद में बनवायी। इसका नाम रखा गया 'शेठ भोगीलाल चकुलाल विद्यावर्धक पुस्तकालय' और उसका व्यवस्थापन करने के लिये एक ट्रस्ट रचा गया।

यह छोटे से पुस्तकालय का चित्ताकर्षक फर्नीचर विक्टोरीअन शैली का है और आज भी देखनेलायक लगता है। पुस्तकालय की अलमारियां अपने जमाने के चुने हुए पुस्तकों से भरी पडी हैं। यहां पर नगर के लोग न सिर्फ पुस्तकें और सामयिक पठने, बल्कि चर्चा-विचार करने भी इकठ्ठा होते थे। यह नगर की विद्याभिमुख संस्कारिता को बढावा मिल सके ऐसा वातावरण यहां खडा किया गया था।
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शेठ श्री पुरुषोत्तमदास नरभेराम पटेल के दान से बना नया पुस्तकालय

नगर के लोगों की वाचन-रुचि को देखते हुए यह पुस्तकालय छोटा मेहसूस होने लगा, तो महिलाएं और बच्चों के लिये एक दूसरा और बडा भवन निर्माण करने की योजना बनायी गयी। और यह भवन सन १९३५ में शेठ श्री मयाभाई मणीलाल महेता, जो कि अपने समय के एक अग्रणी व्यापारी और दृष्टिसभर नेता थे, के प्रयत्नों से साकार हुआ।

इस नये आधुनिक भवन के निर्माण के लिये नगर के एक अन्य बडे व्यापारी शेठ श्री पुरुशोत्तमदास नरभेराम पटेल ने उदार हाथों दान दिया।

क्षतिग्रस्त भवन

यह नया भवन पहले पुस्तकालय से कुछ ही कदम दूर शर्मिष्ठा के किनारे पर ही बना। सन १९३५ में बना यह भवन वास्तुकला व इंजीनियरी कौशल्य का अदभूत नमूना है - जगह की कमी होने के कारण यह भव्य दो-मंझिला इमारत, जिस के उपर एक बडा घंटा-घर भी है, आधी जमीन पर और आधी उंचे खंभों के सहारे शर्मिष्ठा सरोवर में बनायी गयी है। अभी कुछ साल हुए यह इमारत थोडी झूक गयी है। कहा जाता है कि उसके नजदीक किये गये अविचारी खोदकाम के कारण जमीन के नीचे बनायी गयी सीमेंट कोंक्रीट कुछ कड़ी (beam) क्षतिग्रस्त हो गयी, तो इमारत का संतुलन बिगड गया और वह एक तरफ झूक गयी। अगर जल्द ही कोई इंजीनियरी कौशल का उपयोग करते हुए इस इमारत को न बचाया गया, तो एक दिन वह पूरी की पूरी शर्मिष्ठा में ढह जा सकती है। पुस्तकालय का यह भवन आधुनिक वडनगर का एक महत्वपूर्ण प्रतिक है। भावि पीढियां के लिये इसे बचाया रखना अत्यंत आवश्यक है।



अप्रैल १८, २००९
आखिर झूका हुआ पुस्तकालय का भवन गिर ही गया । नगर ने एक भव्य ऐतिहासिक विरासत खो दी ।