महाभारत में आनर्त राज्य
महाभारत के विभिन्न प्रसंगों में आनर्त राज्य की महत्व की भूमिका रही। इस बात का संदर्भ महाभारत की कथा में अनेक जगहों पर पाया जाता है।
महाभारत में आनर्त का संदर्भ महाभारत के पर्व छ अध्याय नव (महा. ६,९) में आनर्त राज्य और आनर्त के लोगों के बारे में अन्य लोगों के साथ निर्देश है: "पुंद्र, भार्ग, किरात, सुदेषणा, यमुना, साक,निशाध, आनर्त, कुंतल, और कुसाल।"

पांडव पुत्रों के लिए सुरक्षा स्थान और तालिमी केन्द्र के रुप में आनर्त
महाभारत के पर्व तीन अध्याय एक सौ बयासी (महा. ३,१८२) में कहा गया है कि, जब पांडवों को उनके राज्य से कौरवों ने निष्कासित किया तब द्रौपदी से हुए पांच पांडव पुत्रों को भी हस्तिनापुर से भेज दिया गया था। पहले वे पांचाल राज्य, जो कि उनके मातृपक्ष के नाना के शासन में था, और बाद में आनर्त राज्य में गये। आनर्त राज्य में वे जानेमाने आनर्त योध्धाओं से युध्ध की कला सीखे।



आनर्त राज्य में उसके पुत्र अपना समय कैसे व्यतित करते हैं इस का वर्णन कृष्ण इन शब्दों में द्रौपदी से करते हैः"तुम्हारे वे पुत्र शस्त्रों के विज्ञान के अभ्यास के प्रति समर्पित हैं, सुचारु वर्तन रखते करतें हैं, और उनका आचरण उनके सच्चे मित्रों के आचरण की तरह ही है। तुम्हारे पिताजी और भाईओं ने उनकी समक्ष राज्य और प्रदेश स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा है, लेकिन लडकों को द्रुपद के निवास में एवं उनके मामाओं के यहां आनंद नही मिलता। तो वे सहिसलामत आनर्तों के प्रदेश में जा कर शस्त्रों के विज्ञान के अभ्यास में सबसे अधिक आनंद उठाते हैं। तुम्हारे पुत्र व्रिश्नीओं के नगर में प्रवेश करते हैं और वहां के लोग उन्हें त्वरित पसंद आते हैं। उन्हें किस तरह आचरण करना चाहिये उसके लिये जैसे तुम उन्हें मार्गदर्शन देती, अथवा माननिय कुंती देती, वैसे ही सुभद्रा सतर्कता से उनका मार्गदर्शन करती है। शायद वह उनका अधिक ध्यान रखती है। प्रद्युम्न जैसे अनिरुध्ध, अभिमन्यु, सुनित, और भानु का शिक्षक है, वैसे ही वह तुम्हारे पुत्रों का भी शिक्षक और आश्रयदाता है। और अच्छा शिक्षक, जो उन्हें भाला, तरवार, ढाल, अस्त्र, और रथ चलाने की कला, घुडसवारी करने, और बहादूर बनने के पाठ उत्तरोत्तर सिखाता है। और वह प्रद्युम्न, रुक्मणी का पुत्र, उन्हें बहुत अच्छी तालिम दे कर, विधविध आयुधों का योग्य उपयोग करने की कला सिखाने के बाद, तुम्हारे पुत्रों और अभिमन्यु के पराक्रमी कार्यों से संतुष्ट होता है। हे द्रुपदपुत्री! जब तुम्हारे पुत्र क्रिडा के लिये बाहर जाते हैं, तो हर एक के साथ में रथ, घोडे, वाहन, और हाथी रहते हैं।"

बाद में कृष्ण पांडवों के निष्कासित नरेश युधिष्ठीर को बताते हैं कि पांडवों के पक्ष में लडने के लिये कौन कौन बहादूर आनर्त सेनापति और योध्धा तत्पर हैं। उनमें सातवत, दसार्ह, कुकुर, अधक, भोज, व्रिष्णी और मधु जातियां शामिल हैं। वे पांडवों के शत्रुओं को हराने के लिये तैयार हैं। हल जिसका आयुध है वह बलराम धनुष्यधारी, अश्व पर सवार, पैदल सैनिक, रथ और हाथी पर सवार योध्धाओं के आगेवान होगे।



आनर्त में कुंती
महाभारत के पर्व पांच अध्याय तिरासी (महा. ५,८३) में निर्देश है कि पांडवों के हस्तिनापुर से निष्कासन के काल में उनकी माता कुंती भी कुछ समय के किये आनर्त प्रदेश में रहीं।

महा युध्ध में आनर्तों का सम्बन्धन
महाभारत के पर्व पांच अध्याय सात (महा. ५,७) में हमें इस बात का विस्तृत विवरण मिलता है कि कौरवों और पांडवों के बिच होने वाले युध्ध में आनर्त योध्धाओं का साथ पाने के लिये आनर्तपुर की मुलाकात के वक्त दुर्योधन और अर्जुन दोनों के प्रयत्नों के क्या परिणाम आये।

कुछ आनर्त योध्धाओं ने कौरवों के सैन्य में शामिल होना पसंद किया, तो कुछ योध्धाओं ने पांडवों को साथ देना पसंद किया। यादवों के नरेश वासुदेव कृष्ण स्वयं पाडवों के साथ सम्बद्ध रहे। उन्हों ने युध्ध में कोई शस्त्र नही उठाने का वचन दिया, लेकिन उन्होंने उस में एक राजनीतिज्ञ, शांती के दूत, रण-नीति के सलाहकार, और अर्जुन के मार्गदर्शक एवं उसके रथ के सारथी के रुप में भाग लेने का निश्चय किया। न जाने क्यों, उन्हों ने बहुत योध्धाओं से बने नारायण के नाम से जाने जाता अपना सैन्य कौरवों के प्रमुख दुर्योधन को दिया।

कृष्ण के भाई बलराम की ईच्छा दुर्योधन की मदद करना और कौरव सैन्य के पक्ष में लडना थी। लेकिन ऐसा करने से बलराम को अपने ही भाई कृष्ण के सामने लडना पडता, क्यों कि कृष्ण ने पांडव प्रमुख अर्जुन के सारथी बनना पसंद किया था। तो, बलराम ने निष्पक्ष रहना पसंद किया। उन्हों ने युध्ध में बिलकुल ही भाग न लेने का निश्चय किया और वे सरस्वती नदी की तट-यात्रा पर चले गये।


आनर्त योध्धाओं का संहार
भोज यादव सेनापती कृतवर्म अपनी एक अक्षौहिणी सेना ले कर कौरवों से जुड गया। उसके सामने, दूसरा महान आनर्त सेनापती सत्यकी, जिस के पास भी एक अक्षौहिणी सेना थी, पांडवों के पक्ष में गया। ये दोनों अपनी अपनी सेना ले कर एक दुसरे के सामने लडे और वे स्वयं भी एक-दूसरे के साथ द्वंद्व-युध्ध में उतरे। (महा, ९,२१)


यह दोनों आनर्त सेनापती कुरुक्षेत्र के युध्ध से तो जीवित वापस आये। लेकिन उसके छत्तीस वर्षों के बाद एक दिन, उन में उस युध्ध के दरमियान अनुचित तरीके ईस्तेमाल करने की बात को ले कर विवाद छिड गया और क्योंकि दोनों मदिरा के नशे में थे वे मारामारी पर उतर आये। और जैसा कि गांधारी ने भविष्य-कथन कर रख्खा था, बाकी के यादवों के साथ वे भी एक-दूसरे से मारे गये। (मह. १६,३)
इस तरह्, कुरुक्षेत्र युध्ध इतने सारे आनर्त योध्धाओं के संहार का नीमित्त हुआ, कि इसके पश्चात आनर्तों के सैनिक आधिपत्य का अस्तांचल हो गया।

महाभारत के संदर्भः कृष्ण द्वैपायन व्यास का महाभारत, अंग्रेजी भाषांतरः कैसरी मोहन गांगुली, भारत प्रेस, कलकत्ता, १८८३-९७