सोलंकी शासक
तीन शतक से भी ज्यादा समय तक सोलंकी शासकों ने वडनगर के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। सन ९४२ में मूलराज ने गुजरात में सोलंकी वंश की स्थापना की और उसी ने मालवा के शासकों को वडनगर के आसपास के प्रदेश से खदेड दिया। मालवा के शासकों ने यह नगर का भरपूर शोषण किया था और उसकी वजह से वह अपनी चमक-दमक खो बैठा था। मूलराज सोलंकी बहुत सक्षम शासक था। उसने सन ९४२ से ९९५ तक की ५३ वर्ष जितनी लंबी अवधि तक राज किया और गुजरात को स्थिरता तथा आबादी प्रदान की। उस के शासन के साथ ही गुजरात की राजधानी पाटण के लीए ही नहीं, लेकिन वडनगर के लिये भी सुवर्णकाल की शुरुआत हुई।
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नगर में बहुत सारे नये मंदिर बनाये गये और पुराने मंदिरों का पुनःनिर्माण किया गया। शर्मिष्ठा के दक्षिणी किनारे पर एक सुआयोजित बाजार ने आकार लिया। पत्थरों से ढके पक्के रास्ते बनाये गये। नगर को अन्य प्रदेशों से जुडते रास्तों के किनारे यात्रिकों के लिये कुएं और वावों का निर्माण किया गया गया।

आज वडनगर में जितने भी शिल्प नजर आते हैं, उन में से बहुतेरे सोलंकी युग में बने।

वडनगर का सांस्कृतिक एवं आर्थिक मूल्य समझते हुए सोलंकी नरेश कुमारपाल ने सन ११५२ में नगर के किले का पुनःनिर्माण कर के उसे और भी मजबूत बनाया।

लगभग तेरहवें शतक के अंत तक यह नगर सोलंकीओं के शासन तले अच्छी तरह सुरक्षित रहा और इस के व्यापार-उद्योग फले-फूले। सन् १२९७ में दिल्ही सलतनत ने गुजरात जीत लिया। सुलतान के लश्कर ने वडनगर पर हमला किया, उसे लूटा, जलाया, और उस के प्रमुख नागरिकों को कत्ल किया। मझबूत किला कोई काम न आया, क्योंकि उसका रक्षण करनेवाला कोई सैन्य वहां था ही नहीं।