मंदिरों का नगर
वडनगर को मंदिरों का नगर भी कहा जा सकता है। यहां विभिन्न देवी-देवताओं के ईतने सारे मंदिर हैं कि हर सौ गज के अंतर पर कोई न कोई छोटा-बडा मंदिर अवश्य दिखाई देता है। इन में से कुछ एक बहुत पुराने हैं, और कुछ कम पुराने हैं। पुराने मंदिर लाल और पीले रेतीले पत्थरों से बने हुए हैं, जब कि आधुनिक समय में बने मंदिरों में पत्थरों के उपरांत ईंटे और सीमेंट का भी उपयोग किया गया है। सभी मंदिरों में मनमोहक शिल्प देखने मिलते हैं। नगर में दो बडे मंदिर-संकुल हैं - एक अमथेर माता मंदिर, और दूसरा हाटकेश्वर मंदिर।



अमथेर माता मंदिर
वडनगर के एकदम पूर्व भाग में स्थित अमथेर माता मंदिर नगर का सबसे पुराना हयात मंदिर है। वास्तव में कभी यह अनेक छोटे-बडे मंदिरों का एक बडा संकुल रहा होगा, लेकिन आज इन में से सिर्फ छः मंदिर बचे हैं। यह मंदिर नक्काशीदार पत्थरों के विशाल उंचे ओटे पर बनाये गये है, जो कि कुछ खाजुराहो के मंदिरों की याद दिलातें हैं। इन में जो सब से बडा मंदिर है उसका द्वार पश्चिम की ओर है; और उस में अभी तो अंबाजी माता की प्रतिमा बिराजमान है। उस के बाहरी हिस्सों में पार्वती, महीषासुमर्दिनी, और अन्य देवताओं की मूर्तियां हैं। अंबाजी मंदिर के पिछे विष्णु, सप्तमातृका, सूर्य, एवं अन्य देवताओं के छोटे मदिर हैं। इन में सूर्य का मंदिर इस लिये ध्यान खिंचता है कि गुजरात में सिर्फ दो ही सूर्य मंदिर हैं - एक वडनगर में, और दूसरा मोढेरा में।



दोनों मंदिरों से सूर्य की मुख्य प्रतिमा गायब है। पूरे संकुल को देखते हुए यह लगता है कि, यहां से बहुत कुछ नष्ट हो चूका है, और जो बचा है वह जो था उसका अंश मात्र है। हो सकता है कि इस संकुल के बहुत कुछ अवशेष आसपास के विस्तार में जमीन के नीचे डटे हुए पडे हो, और वे नगर के पुरातन अवशेष साबित हो।


हाटकेश्वर मंदिर
हाटकेश्वर मंदिर संकुल ज्यादा बडा है और उस की ख्याति भी ज्यादा है। यह मंदिर समूह तेरहवीं सदी में बना हुआ है। इस में मुख्य मंदिर शिव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि वर्तमान शिव मंदिर का निर्माण भले ही तेरहवीं सदी में हुआ हो, लेकिन इसी स्थान पर हजारों वर्षों से शिव मंदिर अस्तित्त्व बनाये हुए है। अगर पुराने धर्मग्रंथों को माना जाय, तो यह शिव मंदिर महाभारत काल से भी पहले का है; और हाटकेश्वर का शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ 'स्वयंभू शिवलिंग' है। मंदिर के गर्भगृह में जहां पर शिवलिंग स्थित है, वह स्थान वर्तमान मंदिर के स्तर से बहुत नीचा है। शायद, यह हकीकत इस बात की द्योतक है कि पुराने ढांचे के मलवे पर नये मंदिर का निर्माण हुआ हो।



हाटकेश्वर मंदिर प्रशिष्ट शैली में बनाया गया है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्वाभिमुख है, लेकिन उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उस के अन्य दो द्वार भी हैं। सभी द्वार भव्य हैं, और वे बारिक शिल्प से अलंकृत हैं। तीनों द्वारों से मंदिर के विशाल व हवादार मध्य-खंड में जाया जा सकता है। मध्य-खंड एक बहुत बडे गुंबज से ढका गया है। मध्य-खंड के पश्चिम में गर्भगृह है, जहां जाने के लिये कुछ एक सीढियां नीचे उतरनी पडती है। यहां पर विख्यात शिवलिंग बिराजमान है। इस के बराबर उपर बहुत उंचाई पर मंदिर का मुख्य शिखर है। यहां से उपर की ओर नजर डाली जाय तो ऐसा लगता है कि मानों हम अंतरिक्ष में खडे हैं। यहां निरव शांति और दिव्यता का अनुभव होता है।

हाटकेश्वर के समग्र मंदिर में बहुत सुंदर और बारिक शिल्प प्रचूर मात्रा में देखने मिलते हैं। मंदिर के अंदर और बाहर की दिवारों पर पुराण, रामायण, महाभारत, और अन्य कथाओं के दृष्यों को साकार करते जीवंत से लगते अनेक शिल्प हैं। कहीं पर भी बिनाशिल्प जगह नहीं दिखती। यह विभूषित शिल्प ही हाटकेश्वर की पहचान अन्य मंदिरों से अलग बनाते हैं।

सोमपुरा मंदिर