अर्जुनबारी दरवाजा
छः दरवाजे
सन ११५२ में सोलंकी नरेश कुमारपाल का बनवाया हुआ छः दरवाजेवाला एक रक्षात्मक किला समग्र पुराने नगर के आसपास था। शर्मिष्ठा सरोवर के तट पर पूर्व दिशा के सन्मुख स्थित, अर्जुनबारी दरवाजे पर लगी पत्थर पर नक्काशी गयी पटिया इसका प्रमाण देती है। आज तो किले की ज्यादातर दीवार नष्ट हो चुकी है, लेकिन छः में से पाँच भव्य दरवाजे लगभग अखण्ड खड़े हैं। हर एक विद्यमान दरवाजा अलग अलग परिकल्पना (डिजाइन) में बनाया गया है। ये उच्च कोटि की कारीगरी के नमूने हैं।

दरवाजे की दीवारों पर यहां-तहां बिखरे कई सुंदर शिल्प हैं। जैसा कि खाजुराहो व अन्य जगहों पर पाया जाता है, यहां भी कुछ एक रोमांच भरे कमनिय शिल्प नजर आतें हैं; यह कुछ उंचाई पर और छोटे कद में हैं। लेकिन ऐसी सार्वजनिक जगहों में उनका होना यह बात का प्रमाण है कि उन दिनों काम-वृत्ति को खुले मन से देखा जाता था।

नदीओल दरवाजा, जिसका शब्दशः अर्थ "नदी की ओर का दरवाजा" होता है, कुछ अच्छी स्थिति में बना रहा दरवाजा है। इस के उपर जो शिल्प हैं, वे सबसे अधिक सुंदर हैं।