रेल आयी
सन १८५२ में भारत में मुंबई और थाणे के बिच प्रथम रेल पटरी बिछाई गई। इस पटरी पर १६ अप्रिल १८५३ के दिन इन दो रेल स्टेशनों के बिच का ३४ किलो मिटर का फासला काटती हुई पहली रेल ट्रेन चली।



श्री जेठाभाई मारफतिया ने रखे हुए रिकार्ड के मुताबिक वडनगर में सन १९०७ तक के समय में रेलवे आयी। उससे यह नगर पूरे देश से जुड गया और व्यापार की सभी दिशायें खुल गयी। अब वडनगर और उसके आसपास के प्रदेश में उत्पादित माल-सामान दूर-सुदूर की जगहों तक निकास किया जा सकता था। उसी तरह दूर दूर के उत्पादन केंद्रों से विधविध चीजवस्तुएं इस नगर में आने लगी।



जल्द ही व्यापार बढने लगा और यह नगर कृषि और औद्योगिक पेदाशों की एक बडी मंडी बन गया। गुड के व्यापार का सारे गुजरात का यह सबसे बडा केन्द्र बन गया; यहां तक कि, वडनगर के व्यापारी गुड अहमदाबाद भेजते थे। उसी तरह, यह इमारती लकडी का भी महत्वपूर्ण केन्द्र बना। यहां के व्यापारी मयानमार (बर्मा), मलाबार, आसाम, और नेपाल से इमारती लकडी खरीद लाते थे और उसे अपनी सॉ-मिलों में काटकर सारे उत्तर गुजरात में बेचते थे। यहां के थोक व्यापारी पल्सिस, जीरा, और आइलसिड्स जैसी कृषि पेदाशों का बडा कारोबार चलाते थे।

वडनगर कपडे पर रंग चढाने और छापकाम करने के उद्योग का ख्यातनाम केन्द्र बना। यहां की भावसार और छिपा कोम, जो कि यह उद्योग चलाती थी, अपने कला-कौशल्य के लिये सारे गुजरात में नामना रखे हुए थी।

रेल स्टेशन की पुरानी छबियां और दस्तावेज श्री अमृत पटेल के सौजन्य से |