
चमत्कारपुर

अंततः, एक बहुत बडे ऋषि ने उसे परामर्श दि कि शक्तितीर्थ नामक स्थल पर के सरोवर में स्नान करने से वह कोढ-मुक्त हो सकता है। तब, राजा शक्तितीर्थ आया, और उस के सरोवर के चमत्कारिक पानी से स्नान करते ही सचमुच कोढ से मुक्त हो गया। वह इतना खुश हुआ कि उसने उस नगर में अनेक भव्य मंदिरों और आकर्षक प्रासादों का निर्माण करवाकर उसे अत्यंत सुन्दर बना दिया।
याज्ञवल्क्य
चमत्कारपुर में ही, पिता ब्रह्मरथ और माता सुनंदा के घर प्रख्यात ऋषि याज्ञवल्क्य, जिन के नाम का अर्थ ही "वेदों के ज्ञाता" होता है, उनका जन्म हुआ था। याज्ञवल्क्य महान विद्वान बने। उन्हों ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' नामक ग्रन्थ लिखा। उन के आश्रम ने बहुत सारे शिष्यों को आकर्षित किया। याज्ञवल्क्य के बारे में बहुत सी रसप्रद बातें हैं। उनमें से एक बृहदरण्यक उपनिषद में पायी जाती है (३.९.१)। यह विदग्ध नामक एक शिष्य के बारे में है कि जिस को यह जानने की जिज्ञासा होती है कि, ईश्वर की संख्या कितनी है। उस शिष्य और याज्ञवल्क्य के बिच इस तरह संवाद होता हैः
बाद में, शकल के पुत्र विदग्ध ने उन से पूछा, "ईश्वर कितने हैं, याज्ञवल्क्य?"
याज्ञवल्क्य ने 'निविद' नामक मंत्र-समूह की संख्या तय करते हुए जवाब दिया, "निविद में बताया गया है उतनेः तीन सौ तीन, और तीन हजार तीन।"
"बहुत अच्छा," शकलपुत्र ने कहा, "और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"तैंतीस।"
"बहुत अच्छा, और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"छः।"
"बहुत अच्छा, और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"तीन।"
"बहुत अच्छा, और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"दो।"
"बहुत अच्छा, और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"देढ।"
"बहुत अच्छा, और कितने ईश्वर हैं, याज्ञवल्क्य?"
"एक।"