समकालिन पुरातात्त्विक उत्खनन
सन १९५३-५४ में, वडनगर में प्रथम पुरातात्त्विक उत्खनन वडोदरा राज्य म्यूजियम के पुरातत्त्वविद डी। सुब्बा राव और आर. एन महेता ने किया। उस समय, यह लेखक को उनके साथ दो महिने तक सहायक के रुप में उत्खनन स्थल पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। उत्खनन के समापन से कुछ समय पहले सुब्बा राव ने नवीन सर्व विद्यालय के सामयिक के लिए यह लेखक, जो कि उसके तंत्री थे, को वडनगर के उत्खनन पर एक लेख दिया। बाद में उन्हों उत्खनन के बारे में विद्यालय में एक विषद वक्तव्य भी दिया। उस वक्त उनका कहना था कि, यह नगर २,५०० वर्ष से भी पहले इसी स्थल पर अपना अस्तित्व बनाये हुए था इसके उनके उत्खनन से पर्याप्त प्रमाण मिलें हैं। उन्होंने यह भी प्रतिपादित किया कि इस जगह का हरप्पा सभ्यता से अनुसंधान था। उन की अवधारणा में 'इस नगर की शुरुआत एक हरप्पा वसाहत के रुप में होने की संभावना है।' जो भी हो, अभी तक इस अवधारणा की निश्चित रुप से पुष्टि कर सके ऐसे ठोस प्रमाण नही मीले हैं। लेकिन उस तरह के प्रमाण पाने के लिए विस्तृत संशोधन आवश्यक है और वह अभी तक हो नही पाया।


गुजरात राज्य के मुख्य पुरातत्त्वविद वाय। एस. रावत की राहबरी में चल रहा वर्तमान उत्खनन ऐसे अवशेष उजागर कर रहा है जिससे यह प्रमाणित हो गया है कि यह नगर बौध्ध धर्म के प्रसार के समय का समकालिन था। अर्थात, उत्खनन से मिले ठोस सबूत नगर को कम से कम ईसा के पहले शतक जितना पुराना साबित करने में कामयाब हो गये हैं। ईसा के दूसरे शतक में वडनगर, जो कि उस वक्त आनंदपुर के नाम से जाना जाता था, बौध्ध धर्म का एक जीवंत केन्द्र था ऐसे प्रमाण प्रवर्तमान उत्खन से निकल आये बौध्ध विहार और स्तुप के अवशेष दे रहे हैं। हो सकता है कि यह उत्खनन का विस्तार बढने के बाद, ऐसे प्रमाण भी हाथ लग जाय जो नगर को अधिक पुराना प्रतिपादित कर दे और डी. सुब्बा राव की अवधारणा को वास्तविकता में बदल दे।


सन २००७ में, गुजरात राज्य के पुरातत्त्व विभाग ने वडनगर में नगर के किले की दक्षिणी दिवार के बाहर उत्खनन शुरु किया। जो कि, अभी तक यह उत्खनन बहुत बडे पैमाने पर नही किया जा रहा है, फिर भी यहां से जो प्रमाण मिले हैं वे यह दृष्टिकोण साबित करने के लिए काफी हैं कि वडनगर सचमुच में बहुत प्राचीन नगर है। दूसरे शतक में बना एक बौध्ध विहार का १८ x १८ मीटर का ढांचा पाया गया है, जो कि बौध्ध साधुओं के रहने के १२ छोटे छोटे कमरों का बना हुआ है। यह स्थान पर वाय। एस रावत के दल ने जो कुछ खोद निकाला है उस की देश-विदेश के बौध्ध निष्णातों और पुरातत्त्वविदों ने जांच करने के बाद यह बात की पुष्टि की है कि यहां पर वास्तव में बौध्ध विहार और स्तुप था। सातवीं सदी में वडनगर, जो कि उस वक्त आनंदपुर कहा जाता था, आये चीनी यात्री ह्युएन-संग ने अपनी यात्रा-पोथी में लिखा है कि यह नगर में कोई दस संघाराम और एक हजार बौध्ध साधु रहते थे। खोद निकाला गया यह बौध्ध विहार ह्युएन-संग की लिखी गई बात को एकदम सच ठहराती है।


यह जगह पर की गई वर्तमान खुदाई से अभी तक विभिन्न प्रकार के दो हजार से भी ज्यादा पुरातात्त्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन में एक बौध्ध प्रतिमा, छोटी-छोटी मूर्तियां, भिक्षा-पात्र, तांबे और चांदी के सिक्के, एक टेराकोट्टा की बनी प्रतिमा का पघडी वाला सर, शेल (shell) की चूडियां, गले के हार के मनके, चमकदार बर्तनों के लेखवाले टूकडे, जैसी चीजें समाविष्ट हैं।
ईंटो के ढांचे सोलंकी युग से लेकर रोमन युग तक हुई बांधकाम प्रवृत्ती की गवाही देते हैं।


क्या सातवीं सदी में ह्युएन-संग की मुलाकात के वक्त ऐसे बौध्ध विहार वडनगर में मौजूद थे?